Monday 26 October 2009

क्यों लगते हो अच्छे केदारनाथ सिंह!


नामवर को बाबा
तुम्हें त्रिलोचन
और मुझे तुम
क्यों लगते हो अच्छे केदारनाथ सिंह?

शायद इसलिए कि स्वाद
एक गंध का नाम है
गंध एक स्मृति है

जो बहती है हमारी धमनियों में
जिस पर नाव की तरह तिरता है
एक प्रकाश स्तम्भ
जो जीवंत इतिहास है।

सोचता हूँ तुम्हारी कविताएं नहीं होतीं
तो मैं क्या पढ़ता केदारनाथ सिंह
शब्द परिचय के बावजूद?
और तुम क्या लिखते?

स्वयं तुम्हारी कविता ही
मांझी का पुल है
मल्लाह के खुश होने की परछाई!!

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